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chemistry assignment
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bsc 2nd year chemistry - 2
प्रश्न 1. सह संयोजन संख्या एवं ज्यामिते को उदाहरण सहित समझाइये।
Explain the Co-ordination number and Geometry?
Ans. सह-संयोजन संख्या (Co-ordination number) और ज्यामिति (Geometry) दो प्रमुख रासायनिक गुणों को व्यक्त करने वाले शब्द हैं, जो क्रिस्टलोग्राफी और रासायनिक संरचनाओं में उपयोगी होते हैं। ये दो तत्व विभिन्न रासायनिक रेखागणितीय रचनाओं के साथ संबंधित होते हैं।
सह-संयोजन संख्या (Co-ordination number) एक तत्व के आस-पास संबंधित अणुओं की संख्या होती है जो उस तत्व के साथ संयोजित होती हैं। इससे तत्व की संरचनात्मक व्यवस्था और उसके आस-पास के अणुओं का व्यापारिक आकार प्राप्त होता है। तत्व की सह-संयोजन संख्या तत्व के पर्यावरणिक संरचना पर निर्भर करती है, और यह उदाहरण आसानी से समझाया जा सकता है।
उदाहरण के रूप में, यदि हम वायुमंडल में स्थित एक आणविक तत्व, जैसे कि नाइट्रोजन (N), की विचार करें, तो नाइट्रोजन अणु के आस-पास कुल आठ अणु होते हैं। इसका अर्थ है कि नाइट्रोजन अणु की सह-संयोजन संख्या 8 है। यह अणु अपने पर्यावरण में आठ नाइट्रोजन अणुओं के साथ संयोजित होता है। इस आणविक संरचना को हम एक नाइट्रोजन मोलेक्यूल के रूप में भी देख सकते हैं, जहां दो नाइट्रोजन अणुओं का संयोजन होता है और सह-संयोजन संख्या 2 होती है।
ज्यामिति (Geometry) तत्व के संयोजन अणुओं की स्थानीय व्यवस्था को संकेत करती है। यह बताता है कि अणुओं को कैसे व्यवस्थित किया गया है और वे किस आकार में व्यवस्थित हैं। ज्यामिति का विश्लेषण करने के लिए हम आणविक संरचनाओं के बॉन्ड लंबाई और बॉन्ड कोणों के साथ संबंधित मोलेक्युलर ज्यामिति के सिद्धांतों का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, नाइट्रोजन अणु के लिए, नाइट्रोजन मोलेक्यूल को त्रिकोणीय ज्यामिति होती है, जहां तीन नाइट्रोजन अणुओं को बॉन्ड लंबाई और बॉन्ड कोण के साथ संयोजित किया जाता है।
इस तरह, सह-संयोजन संख्या और ज्यामिति रासायनिक संरचनाओं को व्यक्त करने के लिए महत्वपूर्ण प्रायोगिक और नाविक संख्यात्मक गुण हैं। ये दोनों तत्व रासायनिक विज्ञान में व्यापक रूप से प्रयोग होते हैं ताकि हम अणुओं और मोलेक्यूलों की संरचना को समझ सकें और उनके गुणों को विश्लेषण कर सकें।
प्रश्न 2. 3D तत्वों के समी चुम्बकीय गुण एवं त्रिविम रसायन को समझाइये।
Explain the 3D Analogues in respect of magnate behavior and its strew chemistry.
Ans. 3D तत्वों के समी चुम्बकीय गुण (3D Analogues of Magnetic Behavior) एक रासायनिक गुण हैं जो मैग्नीटीज़्म के संरचनात्मक और गुणात्मक पहलुओं को 3 आयामी रूप में व्यक्त करते हैं। मैग्नीटीज़्म उन संघटकों या अणुओं के गुणों को संकेत करता है जो चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करते हैं। इसे चुंबकीय संरचना और मैग्नेटीज़्म के रूप में भी जाना जाता है।3D तत्वों के समी चुंबकीय गुण विशेष रूप से दृश्यमान चुंबकीयता के आयामी अनुक्रमों को व्यक्त करते हैं। इसका मतलब है कि इन तत्वों में अणुओं या चुंबकीय संरचनाओं को एक निश्चित क्रम में व्यवस्थित किया जाता है, जिसका परिणामस्वरूप चुंबकीय गुण देखे जा सकते हैं।
इसके उदाहरण के रूप में, एक प्रमुख तत्व जिसमें 3D चुंबकीय गुण देखे जा सकते हैं, है मैग्नीटाइट (Magnetite)। मैग्नीटाइट एक अभिकर्षक धातु है जिसमें आयामी चुंबकीय संरचनाएं होती हैं। इसका अर्थ है कि इसमें विशेष आयामी चुंबकीय संरचना के कारण इसकी रचना और गुणात्मक प्रक्रियाएँ अनुभव की जा सकती हैं।
त्रिविम रसायन (Stereochemistry) एक औद्योगिक रसायनिक विज्ञान है जो तत्वों और मोलेक्यूलों के रचनात्मक और गुणात्मक विशेषताओं को अध्ययन करता है, जिसमें उनका त्रिविमीय आयाम शामिल होता है। त्रिविम रसायन में हम मोलेक्यूलर ज्यामिति, बॉन्ड कोण, और आयामी रूप के माध्यम से मोलेक्यूलों की संरचना को विश्लेषण करते हैं।
मैग्नेटिज्म के संबंध में त्रिविम रसायन का अध्ययन हमें तत्वों या मोलेक्यूलों के चुंबकीय संरचनात्मक प्रक्रियाओं की समझ में मदद करता है। यह हमें चुंबकीय व्यवहार की व्यापक समझ प्रदान करता है और हमें चुंबकीय संरचनाएं और उनके संबंधित गुणों को समझने में सहायता करता है। त्रिविम रसायन का अध्ययन हमें तत्वों और मोलेक्यूलों के चुंबकीय गुणों के बारे में विस्तृत ज्ञान प्रदान करता है और यह हमें उनके रासायनिक प्रक्रियाओं की समझ में मदद करता है।
प्रश्न 3. संकर योगिको का नामकरण उदाहरण द्वारा समझाइये।
Discuss the Nomencature of Co-ordination compounds.
Ans. संकर योजन के नामकरण (Nomencature of Co-ordination compounds) के नियमों का पालन करके चुंबकीय संयोजनों को एक विशेष नाम दिया जाता है। यह नामकरण रासायनिक विज्ञान में अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संकर योजनों के भिन्न-भिन्न प्रकारों को पहचानने और व्यक्त करने में सहायता करता है।
चुंबकीय संयोजनों के नामकरण के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण नियमों का पालन किया जाता है:
1. केंद्रीय धातु के प्रतिष्ठान का नामकरण: संकर योजन के नामकरण में सबसे पहले, केंद्रीय धातु को नामित किया जाता है। यह धातु योजन के व्यापकता और रासायनिक गुणों को प्रतिष्ठित करती है। उदाहरण के लिए, एक संकर योजन जिसमें कोबाल्ट (Co) केंद्रीय धातु है, का नाम "कोबाल्टीक संयोजन" होगा।
2. अपेक्षित और गैर-अपेक्षित योजनीय आयाम के नामकरण: संकर योजन के नामकरण में योजनीय आयाम को नामित किया जाता है। यह आयाम योजन के चारों ओर के अणुओं के साथ बॉन्ड करने की क्षमता को प्रदर्शित करता है। उदाहरण के लिए, एक संकर योजन जिसमें चार नाइट्रिल लिगेंड्स (CN-) कोबाल्ट के साथ बॉन्ड करते हैं, का नाम "कोबाल्टीक टेट्रासाइयाइड योजन" होगा।
3. अवकाशक या अकीकरणीय योजन के नामकरण: संकर योजन के नामकरण में अवकाशक या अकीकरणीय योजन को नामित किया जाता है। यह योजन की संरचना में अणुओं के आपसी व्यवस्था को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, एक संकर योजन जिसमें एक चार्ज पर हाइड्रोक्सील लिगेंड (OH-) कोबाल्ट के साथ बॉन्ड करता है, का नाम "कोबाल्टीक हाइड्रोक्सो कंप्लेक्स" होगा।
यहां एक उदाहरण दिया जाता है जिसमें एक संकर योजन का नामकरण दिखाया गया है:
[Co(NH3)6]Cl3 - हेक्सामीन कोबाल्ट (III) क्लोराइड
इस उदाहरण में, कोबाल्ट (Co) केंद्रीय धातु है, छह अमोनिया लिगेंड्स (NH3) योजन के साथ बॉन्ड करते हैं, और तीन क्लोराइड (Cl-) योजन के अकीकरणीय हैं। इसलिए, इस संकर योजन का नाम "हेक्सामीन कोबाल्ट (III) क्लोराइड" होगा।
प्रश्न 4. लेन्थेनाईड तत्वों के चुम्बकीय तथा स्पेक्ट्रम गुण को लेन्थेनाइड संकुचन द्वारा समझाइये ।
Write down the magnetic and spectral properties by Lanthanide constriction of Lanthanide elements.
Ans. लैंथेनाइड (Lanthanide) तत्वों के चुंबकीय (Magnetic) और स्पेक्ट्रल (Spectral) गुणों का अध्ययन उनकी संकुचन (Contraction) के माध्यम से किया जा सकता है।
1. चुंबकीय गुण (Magnetic Properties):
लैंथेनाइड तत्वों की चुंबकीय संरचना प्रभावित होती है और इसके कारण इनके चुंबकीय गुणों में विशेषताएं पाई जाती हैं। ये तत्व धातु के आपसी चुंबकीय क्रियाओं में बढ़े हुए प्रतिक्रियाशीलता दर्शाते हैं। इनमें आपसी चुंबकीय क्रिया मुख्य रूप से चुंबकीय संयोजनों के कारण होती है, जहां तत्वों के चारों ओर अणुओं के साथ चुंबकीय बाधा का प्रभाव होता है। चुंबकीय संकुचन भी इन तत्वों के चुंबकीय गुणों को प्रभावित करती है, क्योंकि इसके कारण तत्वों के चुंबकीय प्रभाव बढ़ जाते हैं।
2. स्पेक्ट्रल गुण (Spectral Properties):
लैंथेनाइड तत्वों के स्पेक्ट्रल गुण भी उनकी संकुचन के कारण प्रभावित होते हैं। ये तत्व उच्च तापमान और विशेषतः स्पेक्ट्रोस्कोपी में उपयोग होने वाले विद्युतीय यांत्रिकी तत्वों के रूप में महत्वपूर्ण होते हैं। लैंथेनाइड तत्वों के आपसी चुंबकीय इंत्रशिक्षा एवं स्थितिकारी के कारण उनके स्पेक्ट्रल गुण विशेषताएं प्रदर्शित करते हैं। इनमें परमानुवीय विद्युतीय रेखाएं, समीकरण स्तरों का विभाजन, स्पिन-ऑर्बिटल संयोजन, और शीघ्रता के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली पीकों का अध्ययन शामिल होता है।
इन गुणों के अलावा, लैंथेनाइड तत्वों के अन्य रासायनिक गुण जैसे कि धातुगत संरचना, अणु का आकार, आपसी संयोजन, आपसी इंत्रशिक्षा, और अणुओं के आपसी यौगिकी भी संकुचन के प्रभाव से प्रभावित होते हैं। ये गुण लैंथेनाइड तत्वों को विशिष्ट रासायनिक और विद्युतीय गुणों के साथ अलग करते हैं और इन्हें विज्ञानिक और उद्योगिक माध्यमों में व्यापक रूप से उपयोगी बनाते हैं।
प्रश्न 5. द्रव अमोनिया (NH3) एवं द्रव (SO2) के संदर्भ मे अजलीय विलायकों में अभिक्रियायें क्या है। समझआइयें ।
Write down the reaction in non-aqueous solvent with reference to liquid NH3 and liquid SO2
Ans. द्रव अमोनिया (NH3) और द्रव (SO2) के संदर्भ में, कुछ अजलीय विलायकों के साथ रासायनिक अभिक्रियाएं हो सकती हैं। ये अभिक्रियाएं तटस्थ विक्रिया (heterogeneous reaction) के रूप में जानी जाती हैं, जहां दो विभिन्न तत्वों के बीच संपर्क नहीं होता है और अभिक्रिया एक आपसी प्रभावित द्रव (सॉल्वेंट) में होती है।
अजलीय विलायकों के साथ द्रव अमोनिया (NH3) के संदर्भ में, कुछ अभिक्रियाएं निम्नलिखित रूप में हो सकती हैं:
1. विलायकों की गहनीकरण (Complexation): द्रव अमोनिया (NH3) अकीकरणीय विलायकों के साथ अजलीय कम्प्लेक्स बना सकता है। उदाहरण के रूप में, NH3 तत्व साधारणतः अणु कम्प्लेक्स बनाने के लिए मेटल या धातु यौगिकों के साथ अभिक्रिया कर सकता है।
2. प्रोटन ट्रांसफर (Proton Transfer): NH3 तत्व एक अम्लीय गतिशील प्रोटन (H+) को ग्रहण करके एक प्रोटोन ट्रांसफर अभिक्रिया में भागीदारी कर सकता है।
द्रव (SO2) के संदर्भ में, यह एक अन्य अजलीय विलायक है और कुछ अभिक्रियाएं निम्नलिखित रूप में हो सकती हैं:
1. सल्फोनेशन (Sulfonation): SO2 अम्ल (Acid) के रूप में विचरण करके कुछ अजलीय विलायकों के साथ सल्फोनेशन अभिक्रिया में भागीदारी कर सकता है। इस प्रक्रिया में, SO2 मोलेक्यूल सल्फोनिक अम्ल (sulfonic acid) उत्पन्न करने के लिए अम्लीयता के बादल में विचरित होती है।
2. अल्किलेशन (Alkylation): SO2 में हाइड्रोकार्बन (hydrocarbon) यौगिकों के साथ अल्किलेशन अभिक्रिया में भागीदारी करके अजलीय विलायकों की उत्पत्ति कर सकता है। इस प्रक्रिया में, SO2 के साथ अल्कइल हाइड्रोकार्बन रासायनिक अभिक्रिया करके अजलीय विलायक उत्पन्न होते हैं।
ये उदाहरण अजलीय विलायकों के रूप में द्रव अमोनिया (NH3) और द्रव (SO2) के साथ संभव रासायनिक अभिक्रियाएं हैं।
प्रश्न 6. ऑक्साइड व सत्फाइड के प्रथम संक्रमण श्रेणी के संकर योगिक बनाइये?
Write down the oxides and sulphides binary compounds of the First transition series.
Ans. ओक्साइड्स (Oxides) और सल्फाइड्स (Sulphides) प्रथम संक्रमण श्रृंखला के संकर योगिक (Binary Compounds) के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। निम्नलिखित तालिका में प्रथम संक्रमण श्रृंखला के कुछ ओक्साइड्स और सल्फाइड्स की सूची है:
ओक्साइड्स (Oxides):
1. वनादियम ऑक्साइड (Vanadium Oxide) - VO, VO2, V2O3, V2O5
2. क्रोम ऑक्साइड (Chromium Oxide) - CrO, Cr2O3, CrO2, Cr2O5
3. मैंगनीज ऑक्साइड (Manganese Oxide) - MnO, MnO2, Mn2O3, Mn3O4, MnO2
4. आयरन ऑक्साइड (Iron Oxide) - FeO, Fe2O3, Fe3O4
5. कोबाल्ट ऑक्साइड (Cobalt Oxide) - CoO, Co2O3, Co3O4
6. निकेल ऑक्साइड (Nickel Oxide) - NiO, Ni2O3, NiO2
7. कॉपर ऑक्साइड (Copper Oxide) - Cu2O, CuO
8. जिंक ऑक्साइड (Zinc Oxide) - ZnO
सल्फाइड्स (Sulphides):
1. वनादियम सल्फाइड (Vanadium Sulphide) - VS, V2S3, V5S8
2. क्रोम सल्फाइड (Chromium Sulphide) - CrS, Cr2S3, CrS2
3. मैंगनीज सल्फाइड (Manganese Sulphide) - MnS, MnS2
4. आयरन सल्फाइड (Iron Sulphide) - FeS, FeS2
5. कोबाल्ट सल्फाइड (Cobalt Sulphide) - CoS, Co3S4
6. निकेल सल्फाइड (Nickel Sulphide) - NiS, NiS2
7. कॉपर सल्फाइड (Copper Sulphide) - Cu2S, CuS
8. जिंक सल्फाइड (Zinc Sulphide) - ZnS
यहां दी गई सूची में प्रथम संक्रमण श्रृंखला के कुछ ओक्साइड्स और सल्फाइड्स के उदाहरण हैं, जिनमें ध्यान देना चाहिए कि ये केवल कुछ मात्रात्मक उदाहरण हैं और और अन्य भी बहुत सारे यौगिक इस श्रृंखला में पाए जाते हैं।
प्रश्न 7. द्वितीय एवं तृतीय संक्रमण श्रेणी के तत्वों की आयनिक त्रिज्या का तुलनात्मक अध्ययन समझाइये।
Explain the comparative study in respect of lonic radius of second and third transition series.
Ans. द्वितीय एवं तृतीय संक्रमण श्रृंखला के तत्वों की आयनिक त्रिज्या का तुलनात्मक अध्ययन संभव है। आयनिक त्रिज्या एक महत्वपूर्ण गुण है जो एक आयन के आयनिक आयाम (ionic size) को प्रदर्शित करता है। इसके माध्यम से हम एक संक्रमण श्रृंखला के अलग-अलग तत्वों के बीच तत्वबंधी आयाम के बारे में तुलना कर सकते हैं।
द्वितीय संक्रमण श्रृंखला (Second Transition Series):
द्वितीय संक्रमण श्रृंखला में, तत्वों के पाठ्यपुस्तक तत्व (d-block elements) अपने d-ऊर्ध्व-आवर्ती ब्लॉक के अंत में पाए जाते हैं। इस श्रृंखला में पाए जाने वाले तत्व जैसे कि क्रोमियम (Chromium), मैंगनीज (Manganese), आयरन (Iron), कोबाल्ट (Cobalt), निकेल (Nickel) आदि के आयनिक आयाम में अंतर होता है।
तृतीय संक्रमण श्रृंखला (Third Transition Series):
तृतीय संक्रमण श्रृंखला में, तत्वों के पाठ्यपुस्तक तत्व (d-block elements) अपने f-ऊर्ध्व-आवर्ती ब्लॉक के अंत में पाए जाते हैं। इस श्रृंखला में पाए जाने वाले तत्व जैसे कि लैंथनाइड (Lanthanides) और एक्टिनाइड (Actinides) के आयनिक आयाम भी बहुत अधिक होते हैं और इनमें अंतर होता है।
यदि हम द्वितीय संक्रमण श्रृंखला की तत्वों की आयनिक त्रिज्या को तृतीय संक्रमण श्रृंखला की तत्वों की आयनिक त्रिज्या के साथ तुलना करें, तो हम निम्नलिखित अंतरों का नोटिस करेंगे:
1. तृतीय संक्रमण श्रृंखला के तत्वों की आयनिक आयाम द्वितीय संक्रमण श्रृंखला के तत्वों की आयनिक आयाम से बहुत अधिक होती है।
2. तृतीय संक्रमण श्रृंखला में लैंथनाइड और एक्टिनाइड तत्वों के आयनिक आयाम बहुत अधिक होते हैं और इनमें तीसरे संक्रमण श्रृंखला के तत्वों की आयनिक आयाम से भी अधिक अंतर होता है।
इस तरह, तृतीय संक्रमण श्रृंखला के तत्वों की आयनिक त्रिज्या द्वितीय संक्रमण श्रृंखला के तत्वों की आयनिक त्रिज्या की तुलना में बहुत अधिक होती है और इसमें तीसरे संक्रमण श्रृंखला के तत्वों से भी अधिक अंतर होता है।
प्रश्न 8. संक्रमण धातु संकुलो का संयोजकता बन्ध सिद्धांत क्या है समझाईये ।
Explain the Valence bond theory of transition nutal complexes.
Ans. संक्रमण धातु संकुलों की संयोजकता बंध सिद्धांत के अनुसार, इन संकुलों की आयनिक तथा अनियनिक जोड़ी (coordinated bond) इलेक्ट्रॉनिक आपेक्षिकता के कारण बनती हैं। यह सिद्धांत सबसे पहले 20वीं शताब्दी में वलेंस बॉन्ड सिद्धांत के आधार पर विकसित हुआ।
वलेंस बॉन्ड सिद्धांत के अनुसार, एक संक्रमण धातु संकुल के आयनिक जोड़ी एक संयोजकता बंध के रूप में बनती है। इस बंध में संक्रमण धातु के अंतर्गत d-और/या f-पाठ्यपुस्तक ऑर्बिटल्स एक या एक से अधिक लिगंडों के पाठ्यपुस्तक या अन्य अवयवों के ऑर्बिटल्स के साथ मिश्रित होते हैं। यह मिश्रण आपस में अवरुद्ध (overlap) होते हैं और ऐसे एक नये ऑर्बिटल बनाते हैं जिसे संक्रमण धातु के आयनिक जोड़ी ऑर्बिटल (metal-ligand bonding orbital) कहते हैं।
संक्रमण धातु संकुलों की संयोजकता बंध सिद्धांत के अनुसार, इन आयनिक जोड़ियों की स्थिति और गुणधर्मों की समझ इन संक्रमण संयोजकता बंध के रूप में परिभाषित की जा सकती हैं। इस सिद्धांत के अनुसार, संक्रमण धातु संकुलों में आयनिक जोड़ियों की बनावट और विशेषताएं संक्रमण धातु के अंतर्गतीय d- और/या f-ऑर्बिटल्स की स्थिति, आपेक्षिकता, और संकर्मण स्थिरता के साथ जुड़ी होती हैं। यह सिद्धांत विभिन्न ज्यामितीय (geometric) और मैग्नेटिक गुणों, उष्णता (thermodynamic) और विद्युतविज्ञानिक (electrochemical) गुणों को समझने में मदद करता है।
इस प्रकार, संक्रमण धातु संकुलों की संयोजकता बंध सिद्धांत वलेंस बॉन्ड सिद्धांत के आधार पर विकसित हुआ है और इसके माध्यम से हम संक्रमण धातु संकुलों की आयनिक जोड़ियों की स्थिति, आपेक्षिकता, और गुणधर्मों को समझ सकते हैं।
प्रश्न 9. f-ब्लॉक तत्वों का पृथक्करण किस प्रकार किया जाता है। समझाईये।
Explain the Separation of F-Block element.
Ans. f-ब्लॉक तत्वों का पृथक्करण (Separation) प्रायः उच्च-तापमान विलयन (High-temperature Fusion) या ऊष्मीय विद्युतविज्ञान (Pyrometallurgy) के माध्यम से किया जाता है। यह विधि f-ब्लॉक तत्वों की विशेषताओं, जैसे उच्च तापमान पर विलयन तथा धातु के स्नायु और अन्य विद्युतविज्ञानिक गुणों के कारण संभव होती है। इस प्रक्रिया में तत्वों को उच्च तापमान पर पगड़ी जाती है और इसके बाद उच्च तापमान विलयन के माध्यम से तत्वों को पृथक्कृत किया जाता है।
इस प्रक्रिया के द्वारा, f-ब्लॉक तत्वों को स्नायु (Ore) में से अलग किया जाता है और पुनर्चक्रीकरण या उद्घाटन (Refining) प्रक्रिया के द्वारा उच्चतम गुणवत्ता के लिए अलग किया जाता है। इसमें कुछ मुख्य चरण होते हैं, जैसे:
1. खदान (Mining): इसमें योग्यता और अनुकरणीयता ध्यान में रखते हुए f-ब्लॉक तत्वों को खदान किया जाता है।
2. पगड़ी (Roasting): खनिजों को ऊष्मीय प्रक्रिया के माध्यम से उच्च तापमान पर पगड़ा जाता है, जिससे यह उन्नत कच्चे माल का निर्माण करता है।
3. उच्च तापमान विलयन (High-temperature Fusion): ऊष्मीय प्रक्रिया के माध्यम से तत्वों को उच्च तापमान पर पगड़ा जाता है और इसके बाद विलयन के माध्यम से अलग किया जाता है।
4. पुनर्चक्रीकरण या उद्घाटन (Refining): इस चरण में, पगड़े हुए धातु को ऊष्मीय विद्युतविज्ञान, आयनिक अद्यावधिक (Electrorefining), गुलाई (Smelting) या अन्य तकनीकों के माध्यम से अधिक पवित्र और शुद्ध रूप में अलग किया जाता है।
इस प्रक्रिया के बाद, f-ब्लॉक तत्वों को अद्यावधिक (Oxidation), ग्राम-पदार्थ (Hydrometallurgy) या अन्य विधियों के माध्यम से आगे के प्रक्रियाओं के लिए तैयार किया जाता है।
यह पृथक्करण प्रक्रिया उच्च तापमान और विद्युतविज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करके f-ब्लॉक तत्वों की प्राकृतिक उत्पादन और पवित्रीकरण को संभव कराती है।
प्रश्न 10. अम्ल और क्षारकों आरहीनियस अभिधारणा क्या है। समझाइये।
Discuss the Arrhenius concepts of Acid and bases?
Ans. आरहेनियस अभिधारणा अम्ल और क्षारकों के सम्बंध में रासायनिक अभिधारणाओं में से एक है। इस अभिधारणा का आविष्कार 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में स्वेडिश वैज्ञानिक स्वांसेन आरहेनियस द्वारा हुआ। उन्होंने अम्लों और क्षारकों को अपनी विशिष्टताओं के आधार पर परिभाषित किया है।
आरहेनियस अभिधारणा के अनुसार:
1. अम्ल (Acid): अम्ल एक पदार्थ है जो हाइड्रोनियम यों (H+) को आयोनिक रूप से प्रदान करता है। अर्थात्, यह एक विद्युतीय प्रोटॉन दानकर्ता है। अम्लों को पानी में डिस्सोल्व करने पर वे हाइड्रोनियम यों को बनाते हैं और पानी में विद्यमान होते हैं। उदाहरण के लिए, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) जब पानी में डिस्सोल्व होता है, तो यह हाइड्रोनियम यों (H+) और क्लोराइड यों (Cl-) को उत्पन्न करता है।
2. क्षारक (Base): क्षारक एक पदार्थ है जो हाइड्रोक्साइल यों (OH-) को आयोनिक रूप से प्रदान करता है। इसका मतलब है कि क्षारक विद्युतीय प्रोटॉन स्वीकार करने के लिए क्षारित होते हैं। उदाहरण के लिए, एक्साइड (NaOH) जब पानी में डिस्सोल्व होता है, तो यह हाइड्रोक्साइल यों (OH-) और नात्रियम यों (Na+) को उत्पन्न करता है।
इस अभिधारणा के अनुसार, अम्ल और क्षारकों की रसायनिक विज्ञान में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह अभिधारणा अम्ल और क्षारकों की पहचान, प्रक्रिया, अभिक्रिया, आपसी विरोध, अभिलेखीयता और अन्य रासायनिक गुणों के आधार पर उन्हें वर्गीकृत करने में मदद करती है।