कोई टाइटल नहीं

 

लघुउत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1: काष्ठ क्या है? इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:

काष्ठ, पेड़ों के तनों का कठोर और रेशेदार भाग होता है। यह विभिन्न प्रकार के पेड़ों से प्राप्त होता है और इसका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है।

काष्ठ के प्रकार:

  • वर्गीकरण:
    • उत्पत्ति के आधार पर:
      • शीतलकठोर काष्ठ: नम जलवायु में पाए जाने वाले पेड़ों से प्राप्त। (उदा. देवदार, चीड़)
      • उष्णकटिबंधीय काष्ठ: गर्म जलवायु में पाए जाने वाले पेड़ों से प्राप्त। (उदा. महोगनी, शीशम)
    • संरचना के आधार पर:
      • सुपाशवीय काष्ठ: बड़े छिद्र वाले काष्ठ। (उदा. ओक, नीम)
      • संवहन काष्ठ: छोटे छिद्र वाले काष्ठ। (उदा. साल, शीशम)
  • उपयोग के आधार पर:
    • निर्माण काष्ठ: भवनों, फर्नीचर आदि में उपयोग। (उदा. देवदार, सागौन)
    • जलाऊ लकड़ी: ईंधन के रूप में उपयोग। (उदा. शीशम, नीम)
    • कागज काष्ठ: कागज बनाने के लिए उपयोग। (उदा. बांस, नीलगिरी)

प्रश्न 2: चाय उद्योग का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

उत्तर:

चाय उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक और निर्यातक देश है।

चाय उद्योग के मुख्य चरण:

  1. चाय की खेती: चाय की पत्तियों की खेती विभिन्न क्षेत्रों में की जाती है।
  2. पत्तियों की तुड़ाई: चाय की पत्तियों को हाथ से या मशीन द्वारा तोड़ा जाता है।
  3. मुरझाना: ताजी तुड़ी हुई पत्तियों को मुरझाने के लिए फैलाया जाता है।
  4. रोलिंग: मुरझाई हुई पत्तियों को रोल किया जाता है।
  5. ऑक्सीकरण: रोल की हुई पत्तियों को ऑक्सीजन के संपर्क में लाया जाता है, जिससे चाय का रंग और स्वाद विकसित होता है।
  6. सुखाना: ऑक्सीकृत पत्तियों को सुखाया जाता है।
  7. छंटाई: सूखी पत्तियों को विभिन्न आकारों में छांटा जाता है।
  8. पैकिंग: छांटी हुई पत्तियों को पैक किया जाता है और बाजार में बेचा जाता है।

प्रश्न 3: इत्र बनाने की आसवन विधि का संक्षिप्त विवरण दीजिये।

उत्तर:

आसवन विधि इत्र बनाने की एक पारंपरिक विधि है। इस विधि में सुगंधित फूलों, पत्तियों, या अन्य भागों को पानी या भाप में उबालकर उनसे सुगंधित तेल निकाला जाता है।

आसवन विधि के चरण:

  1. कच्चे माल की तैयारी: सुगंधित फूलों, पत्तियों, या अन्य भागों को साफ और धोया जाता है।
  2. आसवन यंत्र में स्थापन: कच्चे माल को आसवन यंत्र में रखा जाता है।
  3. गर्म करना: आसवन यंत्र को गर्म किया जाता है, जिससे पानी या भाप बनती है।
  4. सुगंधित तेल का निकलना: सुगंधित तेल पानी या भाप के साथ ऊपर उठता है और ठंडा होने पर अलग हो जाता है।
  5. इत्र का निर्माण: सुगंधित तेल को अल्कोहल, पानी, और अन्य सामग्री के साथ मिलाकर इत्र बनाया जाता है।


प्रश्न 4: जैम और जेली बनाने की विधि

जाम:

  1. फलों को धोकर छील लें और छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें।
  2. एक बर्तन में फल, चीनी और पानी मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं।
  3. मिश्रण को तब तक उबालें जब तक कि फल नरम न हो जाएं और जैम गाढ़ा न हो जाए।
  4. जाम को गर्म-गर्म जार में भरें और ढक्कन कसकर बंद कर दें।

जेली:

  1. फलों को धोकर छील लें और छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें।
  2. एक बर्तन में फल और पानी मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं।
  3. मिश्रण को तब तक उबालें जब तक कि फल नरम न हो जाएं।
  4. एक मलमल के कपड़े से मिश्रण को छान लें।
  5. पेक्टिन और चीनी को मिश्रण में मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं।
  6. मिश्रण को तब तक उबालें जब तक कि जेली गाढ़ी न हो जाए।
  7. जेली को गर्म-गर्म जार में भरें और ढक्कन कसकर बंद कर दें।

प्रश्न 5: शर्करा और गुड़ में अंतर

विशेषताशर्करागुड़
उत्पत्तिगन्ने के रस सेगन्ने के रस से
प्रसंस्करणअत्यधिक परिष्कृतकम परिष्कृत
रंगसफेदभूरा या पीला
स्वादमीठामीठा, करारा
पोषक तत्वकेवल कैलोरीकैलोरी, खनिज, विटामिन
ग्लाइसेमिक इंडेक्सउच्चमध्यम
उपयोगमिठाई, पेय, अन्य खाद्य पदार्थमिठाई, पेय, अन्य खाद्य पदार्थ

निष्कर्ष:

गुड़ शर्करा की तुलना में अधिक पौष्टिक होता है और इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी कम होता है। इसलिए, गुड़ को शर्करा के लिए एक स्वस्थ विकल्प माना जाता है।


प्रश्न 6: भारत में अगरबत्ती उद्योग की वर्तमान स्थिति

भारत में अगरबत्ती उद्योग एक महत्वपूर्ण कुटीर उद्योग है जो लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करता है। यह उद्योग मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में केंद्रित है।

वर्तमान स्थिति:

  • बाजार का आकार: भारत में अगरबत्ती का बाजार ₹ 6,000 करोड़ से अधिक का अनुमानित है।
  • उत्पादन: भारत प्रति वर्ष 15 लाख टन से अधिक अगरबत्ती का उत्पादन करता है।
  • निर्यात: भारत अगरबत्ती का विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक है।
  • रोजगार: अगरबत्ती उद्योग करीब 10 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करता है।

चुनौतियां:

  • कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव: अगरबत्ती के निर्माण में उपयोग होने वाले कच्चे माल, जैसे लकड़ी का धूंआ, चंदन और आवश्यक तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव होता रहता है।
  • सस्ते आयात: चीन और अन्य देशों से सस्ते आयात घरेलू उद्योग के लिए खतरा पैदा करते हैं।
  • असंगठित क्षेत्र: अगरबत्ती उद्योग का बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र में है, जिसके परिणामस्वरूप श्रमिकों का शोषण होता है और काम करने की खराब स्थिति होती है।

अवसर:

  • बढ़ती मांग: भारत में धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा-पाठ में अगरबत्ती का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप मांग में वृद्धि हो रही है।
  • निर्यात बाजार: विदेशों में भी अगरबत्ती की मांग बढ़ रही है, जिससे निर्यात के अवसर पैदा हो रहे हैं।
  • मूल्य वर्धित उत्पाद: अगरबत्ती उद्योग में मूल्य वर्धित उत्पादों जैसे कि सुगंधित अगरबत्ती, धूप अगरबत्ती और रंगीन अगरबत्ती की मांग बढ़ रही है।

सरकारी पहल:

  • सरकार ने अगरबत्ती उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं।
  • इनमें कौशल विकास कार्यक्रम, वित्तीय सहायता और अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना शामिल है।


प्रश्न 7: स्टार्च क्या है? गेहूं, चावल और मक्का के बीजों से स्टार्च उत्पादन की प्रक्रिया

स्टार्च एक जटिल कार्बोहाइड्रेट है जो पौधों में पाया जाता है। यह ग्लूकोज इकाइयों की लंबी श्रृंखलाओं से बना होता है। स्टार्च भोजन का मुख्य स्रोत है और यह पौधों को ऊर्जा प्रदान करता है।

गेहूं, चावल और मक्का स्टार्च के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। इन अनाज के बीजों से स्टार्च का उत्पादन निम्नलिखित प्रक्रिया द्वारा किया जाता है:

1. सफाई: सबसे पहले, बीजों को धोकर साफ किया जाता है ताकि गंदगी और मलबे को हटाया जा सके।

2. भिगोना: फिर, बीजों को पानी में कई घंटों तक भिगोया जाता है। इससे बीज नरम हो जाते हैं और स्टार्च दाने आसानी से निकल जाते हैं।

3. पीसना: भिगोए हुए बीजों को पीसकर एक महीन गारा बनाया जाता है।

4. छानना: गारे को छानकर स्टार्च के दानों को अलग किया जाता है।

5. धुलाई: स्टार्च के दानों को धोकर अशुद्धियों को हटा दिया जाता है।

6. सुखाना: धुले हुए स्टार्च के दानों को सुखाकर पाउडर बना दिया जाता है।

गेहूं, चावल और मक्का से स्टार्च उत्पादन में कुछ अंतर होते हैं:

  • गेहूं: गेहूं के स्टार्च के दाने आकार में बड़े होते हैं और इनमें अमाइलोपेक्टिन की मात्रा अधिक होती है।
  • चावल: चावल के स्टार्च के दाने आकार में छोटे होते हैं और इनमें अमाइलोस की मात्रा अधिक होती है।
  • मक्का: मक्के के स्टार्च के दाने आकार में सबसे बड़े होते हैं और इनमें अमाइलोपेक्टिन और अमाइलोस की मात्रा लगभग समान होती है।

स्टार्च का उपयोग विभिन्न प्रकार के उत्पादों में किया जाता है, जिनमें शामिल हैं:

  • भोजन: स्टार्च का उपयोग गाढ़ापन बनाने वाले के रूप में सूप, सॉस और डेसर्ट में किया जाता है। इसका उपयोग बेकिंग में भी किया जाता है।
  • कागज: स्टार्च का उपयोग कागज को मजबूत और चिकना बनाने के लिए किया जाता है।
  • कपड़े: स्टार्च का उपयोग कपड़े को कड़ा और चमकदार बनाने के लिए किया जाता है।
  • चिपकने वाले: स्टार्च का उपयोग चिपकने वाले बनाने में किया जाता है।
  • औषध: स्टार्च का उपयोग दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है।

निष्कर्ष:

स्टार्च एक बहुमुखी पदार्थ है जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के उत्पादों में किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत है और इसका उपयोग कई औद्योगिक अनुप्रयोगों में भी किया जाता है।



प्रश्न 8: महुआ के किण्वन से शराब उत्पादन की व्यवसायिक विधि

महुआ (Madhuca indica) एक जंगली पेड़ है जो भारत के कई हिस्सों में पाया जाता है। इसके फूलों से शराब बनाई जा सकती है।

व्यवसायिक विधि:

  1. फूलों का संग्रह: महुआ के फूलों को मार्च-अप्रैल में इकट्ठा किया जाता है। इन्हें सूखे और ठंडे स्थान पर संग्रहित किया जाता है।
  2. पीसना: सूखे फूलों को बारीक पीस लिया जाता है।
  3. किण्वन: पिसे हुए फूलों को पानी और खमीर के साथ मिलाकर किण्वित किया जाता है। किण्वन प्रक्रिया कई दिनों तक चलती है।
  4. आसवन: किण्वित मिश्रण को आसवन यंत्र में डाला जाता है और गर्म किया जाता है। इससे शराब वाष्पित होती है और ठंडा होकर द्रव में बदल जाती है।
  5. भंडारण: शराब को कांच की बोतलों में भरकर ठंडे और अंधेरे स्थान पर संग्रहित किया जाता है।

विशेष बातें:

  • महुआ की शराब में उच्च अल्कोहल सामग्री होती है।
  • इसका स्वाद कड़वा होता है और इसमें एक विशिष्ट सुगंध होती है।
  • महुआ की शराब का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों और औषधीय प्रयोजनों में किया जाता है।

व्यवसायिक अवसर:

  • महुआ की शराब का बाजार भारत में बड़ा है।
  • इस उद्योग में रोजगार सृजन की अच्छी संभावनाएं हैं।
  • सरकार इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है।



प्रश्न 9: पलाश और चाय की पत्तियों पर आधारित उद्योगों पर निबंध

पलाश और चाय दोनों ही महत्वपूर्ण पौधे हैं जिनकी पत्तियों का उपयोग विभिन्न प्रकार के उद्योगों में किया जाता है।

पलाश:

  • पलाश (Butea monosperma) भारत में पाया जाने वाला एक वृक्ष है।
  • इसकी पत्तियों का उपयोग टेक्सटाइल उद्योग में रंग बनाने के लिए किया जाता है।
  • पलाश के फूलों का उपयोग दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है।
  • पलाश के बीजों का उपयोग खाद्य और औषधीय उद्देश्यों के लिए किया जाता है।

पलाश पर आधारित उद्योग:

  • रंग उद्योग: पलाश की पत्तियों से निकाले गए रंगों का उपयोग कपड़े, रेशम और चमड़े को रंगने के लिए किया जाता है।
  • दवा उद्योग: पलाश के फूलों और बीजों का उपयोग पाचन, मूत्र संबंधी और त्वचा संबंधी रोगों के इलाज के लिए किया जाता है।
  • सौंदर्य प्रसाधन उद्योग: पलाश के फूलों का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है।
  • खाद्य उद्योग: पलाश के बीजों का उपयोग आटा, गुड़ और मदिरा बनाने के लिए किया जाता है।

चाय:

  • चाय (Camellia sinensis) एक झाड़ी है जिसकी पत्तियों का उपयोग चाय बनाने के लिए किया जाता है।
  • चाय दुनिया का सबसे लोकप्रिय पेय है।
  • चाय में एंटीऑक्सीडेंट और अन्य पोषक तत्व होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं।

चाय पर आधारित उद्योग:

  • चाय उद्योग: चाय की पत्तियों का उपयोग चाय बनाने के लिए किया जाता है।
  • दवा उद्योग: चाय में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट का उपयोग दवाओं बनाने के लिए किया जाता है।
  • सौंदर्य प्रसाधन उद्योग: चाय का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है।
  • खाद्य उद्योग: चाय का उपयोग आइसक्रीम, डेसर्ट और अन्य खाद्य पदार्थों में किया जाता है।


प्रश्न 10: बकूल के वृक्ष का वानस्पतिक नाम, कुलका नाम एवं इसकी लकड़ी की उपयोगिता

बकूल (Acacia nilotica) एक कंटीला पेड़ है जो भारत, मध्य पूर्व और अफ्रीका में पाया जाता है। यह Fabaceae (मटर) परिवार का सदस्य है।

कुलका नाम:

  • बकूल के पेड़ को मिमोसा (Mimosa) भी कहा जाता है।
  • हिंदी में, इसे कांटेदार बबूल, कांटेदार कीकर, देसी बबूल और सफेद बबूल जैसे नामों से भी जाना जाता है।

लकड़ी की उपयोगिता:

  • बकूल की लकड़ी मजबूत और टिकाऊ होती है।
  • इसका उपयोग फर्नीचर, निर्माण सामग्री, कृषि उपकरण और ईंधन के लिए किया जाता है।
  • बकूल की लकड़ी कठोर होती है और इसका उपयोग लकड़ी की मूर्तियों को बनाने के लिए भी किया जाता है।
  • बकूल की लकड़ी अच्छी गुणवत्ता वाला चारकोल भी बनाती है।
  • बकूल के पेड़ मिट्टी को नाइट्रोजन प्रदान करते हैं, जिससे यह कृषि के लिए फायदेमंद होता है।

अन्य उपयोग:

  • बकूल की छाल और पत्तियों का उपयोग औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है।
  • बकूल के बीजों का उपयोग चारा के रूप में किया जाता है।
  • बकूल के पेड़ मधुमक्खियों को आकर्षित करते हैं और शहद उत्पादन में मदद करते हैं।

निष्कर्ष:

बकूल एक बहुउपयोगी पेड़ है जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों के लिए किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण वन संसाधन है और पर्यावरण के लिए कई लाभ प्रदान करता है।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.