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 6.  क्लॉसियस मोसोटी संबंध बताइए।

Ans. 

क्लॉसियस-मोसोटी संबंध क्या है?

क्लॉसियस-मोसोटी संबंध, जिसे क्लॉसियस-मोसोटी समीकरण के रूप में भी जाना जाता है, एक भौतिकी समीकरण है जो किसी पदार्थ की विद्युत ध्रुवीकरणता (polarizability) को उसके अपवर्तनांक (refractive index) से संबंधित करता है। इसे 1850 में रुडोल्फ क्लॉसियस और टिटो मॉसोत्ती ने स्वतंत्र रूप से विकसित किया था।

यह संबंध निम्न सूत्र द्वारा दिया जाता है:

α = (3/4π N) * [(ε - 1) / (ε - 2)]

जहां:

  • α पदार्थ की प्रति इकाई आयतन विद्युत ध्रुवीकरणता है।
  • N प्रति इकाई आयतन में अणुओं की संख्या है।
  • ε पदार्थ का अपवर्तनांक है।

यह संबंध केवल प्रेरित द्विध्रुवों (induced dipoles) को मानता है, जो बाहरी विद्युत क्षेत्र द्वारा अणुओं में उत्पन्न होते हैं। यह स्थायी द्विध्रुवों (permanent dipoles) वाले पदार्थों के लिए अनुपयुक्त है, जैसे कि पानी।

क्लॉसियस-मोसोटी संबंध का उपयोग:

  • विद्युत ध्रुवीकरणता को मापने के लिए।
  • अणुओं के आकार और आकार के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए।
  • ध्रुवीय और गैर-ध्रुवीय पदार्थों के बीच अंतर करने के लिए।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि क्लॉसियस-मोसोटी संबंध एक अनुमानित समीकरण है। यह केवल तभी सटीक होता है जब:

  • अणु गोलाकार होते हैं।
  • अणुओं के बीच की दूरी उनके व्यास से बहुत अधिक होती है।
  • बाहरी विद्युत क्षेत्र कमजोर होता है।


7.  एंपीयर का परिपथ नियम बताइए

Ans.

एंपीयर का परिपथीय नियम

एंपीयर का परिपथीय नियम चुंबकत्व का एक मूलभूत नियम है जो किसी बंद लूप के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र के समाकलन और उस लूप से होकर प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा के बीच संबंध स्थापित करता है। इसे 1826 में फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी आंद्रे-मैरी एंपीयर द्वारा प्रतिपादित किया गया था।

सूत्र:

यह नियम गणितीय रूप से निम्नलिखित सूत्र द्वारा दर्शाया जाता है:

∮B∙dl = μ₀I

जहां:

  • ∮B∙dl लूप के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र का रेखा समाकलन है।
  • μ₀ शून्य में चुंबकीय पारगम्यता (4π × 10⁻⁷ T·m/A) है।
  • I लूप से होकर प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा है।

उपयोग:

एंपीयर का परिपथीय नियम का उपयोग विभिन्न प्रकार की चुंबकीय समस्याओं को हल करने के लिए किया जाता है, जैसे:

  • सोलनॉइड और टॉरॉयड में चुंबकीय क्षेत्र की गणना करना।
  • विद्युत चुम्बकों का डिजाइन करना।
  • चुंबकीय प्रेरण का अध्ययन करना।

उदाहरण:

एक सोलनॉइड में, विद्युत धारा सोलनॉइड के तारों से होकर गुजरती है, जिससे सोलनॉइड के अंदर एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। एंपीयर का परिपथीय नियम का उपयोग करके, हम सोलनॉइड के अंदर किसी भी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की ताकत की गणना कर सकते हैं।


8.  L.C.R (ग्राही), तथा समांतर L.C.R. अस्वीकार परिपथ को समझाइए 

Ans.  

L.C.R. (ग्राही) परिपथ:

L.C.R. (ग्राही) परिपथ एक विद्युत परिपथ होता है जिसमें प्रतिरोध (R), प्रेरक (L) और संधारित्र (C) तीनों घटक श्रृंखला में जुड़े होते हैं। इसे श्रृंखला L.C.R. परिपथ या ग्राही परिपथ भी कहा जाता है।

इस परिपथ की विशेषताएं:

  • प्रतिरोध (R): यह विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करता है।
  • प्रेरक (L): यह विद्युत धारा में परिवर्तन का विरोध करता है।
  • संधारित्र (C): यह विद्युत आवेश को संग्रहित करता है।

L.C.R. परिपथ का उपयोग:

  • रेडियो और टेलीविजन रिसीवर में ट्यूनिंग के लिए।
  • इलेक्ट्रॉनिक फिल्टर में आवृत्ति-चयनात्मक सर्किट बनाने के लिए।
  • विद्युत शक्ति प्रणालियों में विद्युत हस्तक्षेप को कम करने के लिए।

समान्तर L.C.R. अस्वीकार परिपथ:

समान्तर L.C.R. अस्वीकार परिपथ एक विद्युत परिपथ होता है जिसमें प्रतिरोध (R), प्रेरक (L) और संधारित्र (C) तीनों घटक समान्तर में जुड़े होते हैं।

इस परिपथ की विशेषताएं:

  • प्रतिरोध (R): यह विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करता है।
  • प्रेरक (L): यह विद्युत धारा में परिवर्तन का विरोध करता है।
  • संधारित्र (C): यह विद्युत आवेश को संग्रहित करता है।

समान्तर L.C.R. अस्वीकार परिपथ का उपयोग:

  • अवांछित आवृत्तियों को हटाने के लिए, जैसे कि रेडियो और टेलीविजन संकेतों में।
  • विद्युत शक्ति प्रणालियों में विद्युत हस्तक्षेप को कम करने के लिए।

L.C.R. परिपथ और समांतर L.C.R. अस्वीकार परिपथ के बीच अंतर:

विशेषताL.C.R. (ग्राही) परिपथसमांतर L.C.R. अस्वीकार परिपथ
घटकों का कनेक्शनश्रृंखला मेंसमांतर में
अनुप्रयोगट्यूनिंग, फिल्टरिंग, शोर में कमीशोर में कमी, अवांछित आवृत्तियों को हटाना
प्रतिध्वनि आवृत्तिएक विशिष्ट आवृत्ति पर अधिकतम प्रतिध्वनिएक विशिष्ट आवृत्ति पर न्यूनतम प्रतिध्वनि











9. साइक्लोट्रॉन और बीटाट्रॉन की संरचना और कार्यविधि को समझाइए 

Ans.   

साइक्लोट्रॉन और बीटाट्रॉन

साइक्लोट्रॉन और बीटाट्रॉन दोनों कण त्वरक हैं, लेकिन वे कणों को गति देने के लिए अलग-अलग सिद्धांतों का उपयोग करते हैं। आइए दोनों को अलग-अलग देखें:

1. साइक्लोट्रॉन (Cyclotron):

निर्माण:

  • साइक्लोट्रॉन में दो खोखले, अर्धगोलाकार कक्ष (D- आकार के) होते हैं जिन्हें ड्यूटेरॉन (Dee) कहा जाता है। ये ड्यूटेरॉन एक शक्तिशाली विद्युत क्षेत्र बनाते हैं।
  • इन ड्यूटेरॉन को एक मजबूत स्थायी चुंबकीय क्षेत्र के अंदर रखा जाता है, जिसका चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ ड्यूटेरॉन के लंबवत होती हैं।
  • बीच में एक कण स्रोत होता है, जो आवेशित कणों का उत्सर्जन करता है (जैसे प्रोटॉन, ड्यूटेरॉन, अल्फा कण)।
  • एक आवृत्ति नियंत्रक ड्यूटेरॉन पर विद्युत क्षेत्र को तेजी से बदलने के लिए उपयोग किया जाता है।

कार्यप्रणाली:

  1. कण स्रोत से निकलने वाले आवेशित कणों को विद्युत क्षेत्र द्वारा त्वरित किया जाता है।
  2. जैसे ही कण एक ड्यूटेरॉन से दूसरे ड्यूटेरॉन में प्रवेश करते हैं, विद्युत क्षेत्र की दिशा उलट जाती है।
  3. लेकिन चुंबकीय क्षेत्र स्थिर रहता है और यह कणों को एक गोलाकार पथ में मोड़ता है।
  4. हर बार कण एक ड्यूटेरॉन को पार करते हैं, उन्हें विद्युत क्षेत्र द्वारा एक "किक" मिलती है, जिससे उनकी गतिज ऊर्जा बढ़ती जाती है।
  5. चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता को स्थिर रखा जाता है, लेकिन कणों की बढ़ती गति के कारण उनकी कक्षा का व्यास धीरे-धीरे बढ़ता जाता है।
  6. इस तरह से सर्पिल पथ में घूमते हुए कण उच्च गति प्राप्त कर लेते हैं।
  7. अंत में, कणों को एक डिफ्लेक्टर प्लेट द्वारा कक्ष से बाहर निकाल दिया जाता है।

उपयोग:

  • साइक्लोट्रॉन का उपयोग विभिन्न आइसोटोपों के उत्पादन, कैंसर उपचार में रेडियोधर्मी समस्थानिक बनाने और कण भौतिकी अनुसंधान में किया जाता है।

2. बीटाट्रॉन (Betatron):

निर्माण:

  • बीटाट्रॉन में एक टॉरॉयड के आकार का वैक्यूम चैम्बर होता है जिसके अंदर एक डोनट के आकार का कूंडलीय कुण्डल (कोइल) होता है।
  • यह कुंडली एक परिवर्ती (AC) धारा लेती है, जो एक परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है।

कार्यप्रणाली:

  1. वैक्यूम चैम्बर में एक इलेक्ट्रॉन स्रोत होता है जो इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन करता है।
  2. परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र इलेक्ट्रॉनों को एक वृत्ताकार पथ में घूमने के लिए बाध्य करता है।
  3. यह चुंबकीय क्षेत्र दो भूमिकाएँ निभाता है:
    • कणों को एक वृत्ताकार पथ में मोड़ना।
    • कणों को कक्षा के भीतर त्वरित करना (Lorentz force के कारण)।
  4. जैसे-जैसे इलेक्ट्रॉन गति करते हैं, कक्षा का व्यास बढ़ता जाता है ताकि कण हमेशा मजबूत चुंबकीय क्षेत्र के पास रहें ("बीटाट्रॉन स्थिति")।
  5. इस प्रकार इलेक्ट्रॉन उच्च गति प्राप्त कर लेते हैं।

उपयोग:

  • बीटाट्रॉन का उपयोग मुख्य रूप से उच्च-ऊर्जा एक्स-रे स्रोतों के रूप में किया जाता है, जिनका उपयोग चिकित्सा इमेजिंग और सामग्री अनुसंधान में किया जाता है।


10. मैक्सवेल के समीकरणों का व्युत्पत्ति ज्ञात कीजिए।

And.   मैक्सवेल के समीकरणों का व्युत्पत्ति अपेक्षाकृत जटिल है और उच्च-स्तरीय गणित का उपयोग करता है। इसलिए, इन समीकरणों के पूरे औपचारिक व्युत्पत्ति को हिंदी में समझाना मुश्किल है।

हालांकि, मैं आपको मैक्सवेल के चार समीकरणों के अंतर्निहित भौतिक सिद्धांतों की अवधारणा दे सकता हूं और आपको उनसे जुड़े संसाधन प्रदान कर सकता हूं।

मैक्सवेल के चार समीकरण विद्युत और चुंबकत्व के संबंध को संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं। ये समीकरण हैं:

  1. गॉस का विद्युत क्षेत्र नियम: यह बताता है कि किसी बंद सतह से गुजरने वाला कुल विद्युत क्षेत्र का फ्लक्स उस सतह के अंदर संलग्न कुल आवेश के समानुपातिक होता है।
  2. गॉस का चुंबकत्व नियम: यह बताता है कि किसी बंद लूप के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र का कुल समाकलन हमेशा शून्य होता है। दूसरे शब्दों में, पृथक चुंबकीय ध्रुव (isolated magnetic poles) नहीं होते हैं।
  3. फैराडे का विद्युत चुम्बकीय प्रेरण नियम:  यह बताता है कि किसी बंद लूप के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र के परिवर्तन से उस लूप में एक विद्युत क्षेत्र उत्पन्न होता है।
  4. एम्पीयर का मैक्सवेल का नियम: यह बताता है कि किसी बंद लूप के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र का रेखा समाकलन उस लूप से होकर गुजरने वाली विद्युत धारा के समानुपातिक होता है, साथ ही विद्युत क्षेत्र में परिवर्तन के कारण उत्पन्न विस्थापन धारा को भी ध्यान में रखता है।


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