6. लाप्लास एवं प्वासो समीकरण को समझाइए
Ans.
लाप्लास और प्वासों समीकरण:
लाप्लास समीकरण:
यह एक द्वितीय-कोटि वाला आंशिक अवकल समीकरण (PDE) है जो एक फलन के लाप्लासियन को शून्य के बराबर रखता है।
गणितीय रूप में:
∇²Φ = 0
जहां:
- Φ(x, y, z) एक त्रि-आयामी फलन है।
- ∇² लाप्लासियन ऑपरेटर है, जिसे इस प्रकार दर्शाया जाता है:
∇² = ∂²/∂x² + ∂²/∂y² + ∂²/∂z²
अनुप्रयोग:
- स्थिर-स्थिति ताप वितरण
- स्थिर विद्युत क्षेत्र
- द्रव गतिशीलता
प्वासों समीकरण:
यह लाप्लास समीकरण का एक विशेष मामला है, जिसमें एक स्रोत शब्द (f) शामिल होता है।
गणितीय रूप में:
∇²Φ = f
जहां:
- f(x, y, z) स्रोत शब्द है, जो फलन के परिवर्तन की दर का प्रतिनिधित्व करता है।
अनुप्रयोग:
- विद्युत क्षमता वितरण (चार्ज घनत्व के साथ)
- द्रव्यमान वितरण (गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के साथ)
- ध्वनि तरंग प्रसार
7. ए. सी. तथा डी. सी. मोटर के बारे मे सामान्य जानकारी दीजिए
Ans.
ए.सी. और डी.सी. मोटर:
परिचय:
मोटर विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करने वाले उपकरण होते हैं। वे पंखे, कंप्यूटर हार्ड डिस्क, इलेक्ट्रिक वाहन और कई अन्य उपकरणों में उपयोग किए जाते हैं।
दो मुख्य प्रकार के मोटर होते हैं: एसी (प्रत्यावर्ती धारा) मोटर और डीसी (दिष्ट धारा) मोटर।
एसी मोटर:
- एसी मोटर प्रत्यावर्ती धारा (AC) पर काम करते हैं।
- वे सरल और कम खर्चीले होते हैं।
- वे विभिन्न गति और टॉर्क प्रदान करते हैं।
- घरेलू उपकरणों, औद्योगिक मशीनरी और पंपों में व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं।
डीसी मोटर:
- डीसी मोटर दिष्ट धारा (DC) पर काम करते हैं।
- वे चिकनी गति नियंत्रण और उच्च टॉर्क प्रदान करते हैं।
- इलेक्ट्रिक वाहनों, लिफ्ट और रोबोटिक्स में उपयोग किए जाते हैं।
एसी और डीसी मोटर के बीच अंतर:
विशेषता | एसी मोटर | डीसी मोटर |
---|---|---|
बिजली की आपूर्ति | प्रत्यावर्ती धारा (AC) | दिष्ट धारा (DC) |
डिजाइन | सरल | जटिल |
लागत | कम खर्चीला | अधिक खर्चीला |
गति नियंत्रण | कम सटीक | अधिक सटीक |
टॉर्क | कम टॉर्क | उच्च टॉर्क |
अनुप्रयोग | घरेलू उपकरण, औद्योगिक मशीनरी, पंप | इलेक्ट्रिक वाहन, लिफ्ट, रोबोटिक्स |
8. नॉर्टन प्रमेय को समझाइए
Ans.
नॉर्टन प्रमेय:
नॉर्टन प्रमेय रैखिक विद्युत परिपथों का विश्लेषण करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह बताता है कि किसी भी जटिल रैखिक द्वि-टर्मिनल नेटवर्क को एक सरल समतुल्य परिपथ द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसमें केवल एक धारा स्रोत और एक समानांतर प्रतिरोधक होता है।
गणितीय रूप से:
- नॉर्टन धारा (IN): यह धारा है जो तब प्रवाहित होती है जब भार को हटा दिया जाता है (यानी, लोड प्रतिरोध R_L = 0)
- नॉर्टन प्रतिरोध (RN): यह प्रतिरोध है जो भार टर्मिनलों पर दिखाई देता है जब धारा स्रोत को हटा दिया जाता है (यानी, IN = 0)
नॉर्टन प्रमेय का उपयोग करके, हम किसी भी भार प्रतिरोध (R_L) के लिए परिपथ में धारा (I_L) की गणना कर सकते हैं:
I_L = (IN) / (RN + R_L)
उदाहरण:
मान लीजिए कि हमारे पास एक जटिल रैखिक द्वि-टर्मिनल नेटवर्क है। नॉर्टन प्रमेय का उपयोग करके, हम इसे एक सरल समतुल्य परिपथ में बदल सकते हैं जिसमें IN = 5A और RN = 2Ω होता है।
अब, यदि हम R_L = 3Ω भार को जोड़ते हैं, तो परिपथ में धारा (I_L) होगी:
I_L = (5A) / (2Ω + 3Ω) = 1.67A
नॉर्टन प्रमेय के लाभ:
- यह जटिल परिपथों का विश्लेषण सरल बनाता है।
- यह हमें भार प्रतिरोध में परिवर्तन के लिए परिपथ में धारा की आसानी से गणना करने की अनुमति देता है।
नॉर्टन प्रमेय की सीमाएं:
- यह केवल रैखिक द्वि-टर्मिनल नेटवर्क पर लागू होता है।
- यह गैर-रेखीय तत्वों वाले परिपथों का विश्लेषण नहीं कर सकता है।
जे जे थॉमसन की विधि द्वारा इलेक्ट्रॉन का विशिष्ट आवेश (e/m) निर्धारित करना
जे जे थॉमसन ने 1897 में एक प्रयोग किया जिसके द्वारा उन्होंने कैथोड किरणों (cathode rays) के कण प्रकृति का प्रदर्शन किया और उनका विशिष्ट आवेश (e/m) निर्धारित किया।
प्रयोग की विधि:
-
उपकरण: निर्वातित (vacuum) डिस्चार्ज ट्यूब, विद्युत क्षेत्र लगाने के लिए दो प्लेटें, चुंबकीय क्षेत्र लगाने के लिए विद्युत चुम्बक (electromagnet),(ying guang ping - फ्लुओरेसेंट स्क्रीन)
-
प्रक्रिया:
- डिस्चार्ज ट्यूब में कैथोड (ऋणात्मक इलेक्ट्रोड) और एनोड (धनात्मक इलेक्ट्रोड) होते हैं।
- कैथोड को गर्म करने पर उससे ऋणात्मक आवेशित कण उत्सर्जित होते हैं, जिन्हें कैथोड किरणें कहा जाता है।
- ये किरणें एनोड की ओर सीधी रेखा में चलती हैं और फ्लुओरेसेंट स्क्रीन से टकराकर उस पर चमक पैदा करती हैं।
- कैथोड और एनोड के बीच दो समानांतर प्लेटों को उच्च विभवांतर (potential difference) से जोड़ा जाता है। इससे उत्पन्न विद्युत क्षेत्र कैथोड किरणों को अपनी गति की दिशा में मोड़ देता है (धनात्मक आवेश के विपरीत दिशा में)।
- इसके बाद, ट्यूब के चारों ओर विद्युत चुंबक लगाकर एक समान चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जाता है। यह चुंबकीय क्षेत्र कैथोड किरणों को वृत्ताकार पथ में मोड़ने का प्रयास करता है।
-
विशिष्ट आवेश (e/m) की गणना:
विद्युत और चुंबकीय क्षेत्रों को इस प्रकार समायोजित किया जाता है कि फ्लुओरेसेंट स्क्रीन पर बने चमकदार बिंदु बिना किसी विक्षेपण के मूल स्थिति में वापस आ जाए। इस स्थिति में, विद्युत बल और चुंबकीय बल संतुलित हो जाते हैं।
संतुलन की स्थिति में निम्न समीकरण लागू होता है:
eE = evB
जहां:
- e - इलेक्ट्रॉन का आवेश
- E - विद्युत क्षेत्र का मान
- v - कैथोड किरणों का वेग
- B - चुंबकीय क्षेत्र का मान
इस समीकरण को पुनर्व्यवस्थित करने पर हमें विशिष्ट आवेश (e/m) प्राप्त होता है:
e/m = v / (E/B)
विद्युत क्षेत्र (E) और चुंबकीय क्षेत्र (B) के मान को प्रयोग द्वारा मापा जा सकता है। कैथोड किरणों के वेग (v) को भी प्रयोग द्वारा निर्धारित किया जा सकता है। इस प्रकार, उपरोक्त समीकरण से इलेक्ट्रॉन का विशिष्ट आवेश (e/m) की गणना की जा सकती है।
10. धारा का सांतत्य समीकरण समझाए ।
Ans.
धारा का सांतत्य समीकरण:
यह एक भौतिकी का सिद्धांत है जो किसी बंद सतह से होकर प्रवाहित होने वाली धारा की मात्रा को नियंत्रित करता है।
गणितीय रूप में:
∫(J∙dS) = 0
जहां:
- J - धारा घनत्व (प्रति इकाई क्षेत्रफल से होकर प्रवाहित होने वाली आवेश की मात्रा)
- dS - क्षेत्रफल का infinitesimal तत्व
- ∫ - बंद सतह पर समाकलन
सरल शब्दों में:
यह समीकरण कहता है कि किसी भी बंद सतह से होकर प्रवेश करने वाली धारा की मात्रा उस सतह से बाहर निकलने वाली धारा की मात्रा के बराबर होती है।
उदाहरण:
मान लीजिए कि हमारे पास एक पाइप है जिसके माध्यम से पानी बह रहा है।
धारा का सांतत्य समीकरण हमें बताता है कि पाइप में किसी भी बिंदु पर प्रवेश करने वाली पानी की मात्रा उस बिंदु से बाहर निकलने वाली पानी की मात्रा के बराबर होगी।
धारा के सांतत्य समीकरण के अनुप्रयोग:
- द्रव गतिकी: यह समीकरण द्रव प्रवाह का विश्लेषण करने के लिए उपयोग किया जाता है, जैसे कि पाइप में पानी का प्रवाह या वायुमंडल में हवा का प्रवाह।
- अन्य क्षेत्र: यह समीकरण अन्य क्षेत्रों में भी लागू होता है, जैसे कि ऊष्मागतिकी और रसायन विज्ञान।